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अघोषित आपातकाल के साए में!

समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया
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limtysai

(लिमटी खरे)

लगता है चालीस साल पहले आपातकाल (इमरजेंसी) घोषित तौर पर लागू हुई थी, किन्तु पिछले कुछ सालों से अघोषित तौर पर आपातकाल के साए में सिवनी के नागरिक जी रहे हैं। शासन प्रशासन कहां जा रहा है? क्या हो रहा है? क्या होना चाहिए? कैसा होना चाहिए?इसकी परवाह न तो चुने हुए प्रतिनिधियों को है न ही किसी अन्य को ही प्रतीत हो रही है।

जिला मुख्यालय सिवनी का ही उदहारण अगर लिया जाए तो सिवनी में जिला कलेक्टर हर साल एक फरमान जारी करते हैं। इस फरमान में कापी किताब, गणवेश आदि की लूट से पालकों को मुक्त कराने की मंशा प्रतीत होती है। तीन साल हो गए पर पालक आज भी राहत की सांस नहीं ले पा रहे हैं। पालक आज भी शालाओं के पाठ्यक्रम की कापी किताबें और गणवेश दुकान विशेष से खरीदने को मजबूर हैं।

जिले में संचालित होने वाले सरकारी और निजी स्कूलों पर किसी का बस नहीं रह गया है। चालीस मिनिट के कालखण्ड (पीरियड) के बाद बच्चों को मजबूरन मंहगी कोचिंग पढ़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है। अव्वल तो पालक निजी शालाओं में मंहगी फीस देकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं और दूसरी ओर कोचिंग क्लासेस की हजारों की फीस भी उन्हीं के मत्थे आने से उनका बजट बिगड़ना स्वाभाविक ही है।

शहर की कानून और व्यवस्था को मानो लकवा मार गया है। अचानक ही सड़कों पर यातायात और कोतवाली पुलिस की भरमार प्रतीत होती है और एक अंतराल के बाद यह गायब हो जाती है। जिले भर में जुएं की फड़ें जंगलों में जम रही हैं। मीडिया में इस आशय की खबरें भी जमकर चलने के बाद भी पुलिस की कार्यवाही संतोषजनक नहीं मानी जा सकती है।

जिला मुख्यालय में ही रात गहराते दवाओं की दुकानों में ताले पड़ जाते हैं। रात बारह बजे से सुबह सात बजे तक मरीजों के परिजन दवाओं के लिए भटकते देखे जा सकते हैं। किराना दुकानों में शराब बिक रही है। रात को घर लौटते सभ्रांत लोगों को रोककर पुलिस उनसे पूछताछ करती है, पर जरायमपेशा लोग देर रात तक आवारागर्दी करते हैं पर पुलिस को शायद वे दिखाई नहीं पड़ पाते हैं।

जिला मुख्यालय सहित नगरीय निकाय क्षेत्र में आवारा जानवर, मवेशी, कुत्ते, सुअर,गधे आदि न घूमें इसके लिए निश्चित समय के अंतराल के बाद जिला कलेक्टर के आदेशों का हवाला देकर मुख्य नगर पालिका अधिकारी सिवनी के द्वारा मीडिया के माध्यम से एक चेतावनी जारी करवाई जाती है, पर कार्यवाही के नाम पर कुछ होता नहीं दिखता है। बारिश में कटखने कुत्ते लोगों का जीना मुहाल किए हुए हैं, पर पालिका को इसकी परवाह नहीं दिखती।

बारिश आते ही शहर तालाब बन जाता है। पालिका को इसकी चिंता नहीं है। पालिका इस चिंता में अवश्य ही दुबली होती दिख रही है कि 62 करोड़ 55 लाख (मूलतः 45 करोड़ एवं चालीस लाख की दो मोटर खरीदने के बाद 62 करोड़ 35 लाख रूपए) की नवीन जलावर्धन योजना को कैसे पारित कर काम चालू करवाया जाए।

नगर पालिका सिवनी की महात्वाकांक्षी माडल रोड बीरबल की खिचड़ी बनकर रह गई है। दो साल से अधिक समय हो गया इसे बनते बनते। माडल रोड के निर्माण से अब जनता उकताने लगी है। यह माडल रोड जनता की सुविधा के बजाए अब जनता के लिए मुसीबत का सबब ज्यादा बनती दिख रही है। इस सड़क का निर्माण समय सीमा में क्यों नहीं हुआ यह जवाबदेही किसी की कौन तय करे? कौन पूछे? यह बात भी किसी को पता नहीं है।

यह आलम तब है जबकि जिला कलेक्टर भरत यादव एवं विधायक दिनेश राय स्वयं इस सड़क का निरीक्षण कर चुके हैं। इतना ही नहीं इस सड़क के संबंध में पिछले साल विधानसभा में दिनेश राय के द्वारा प्रश्न भी खड़ा किया जा चुका है। रोज ही इस सड़क पर न जाने कितनी दुर्घटनाएं घट रहीं हैं, पर पालिका परिषद को मानो इससे कुछ लेना देना नहंी है।

जिला चिकित्सालय बुरी तरह कराह रहा है। जिला चिकित्सालय की साफ सफाई और सुरक्षा के लिए दस लाख रूपए प्रतिमाह से अधिक की राशि खर्च की जा रही है। दो सालों मेें चिकित्सालय में करोड़ों रूपए तो महज साफ सफाई और सुरक्षा में ही खर्च हो चुके हैं। जिला चिकित्सालय के सफाई और सुरक्षा कर्मी कहां सेवाएं दे रहे हैं यह भी शोध का ही विषय है।

जिले के बाजार में दो नंबर में बिना कर चुकाए आने वाली समाग्री सरेआम बिक रही है। विक्रयकर विभाग सहित अन्य जिम्मेदार विभाग मौन हैं। जिले में अनेक स्थानों पर टेंकर्स में तेल लाया जाकर उन्हें ब्रांडेड बनाकर बेचा जा रहा है। दुकानदार बिना बिल काटे ही सामान बेच रहे हैं। जिले में गली गली में शराब बिक रही है। युवा वर्ग शराब सहित अन्य नशे की जद में आकर अपना भविष्य चौपट कर रहा है। आधी रात को शराब दुकानों में दवा दुकानों के मानिंद लगी खिड़की से शराब आसानी से मुहैया हो रही है।

जिले में आवागमन के साधनों के बुरे हाल हैं। फोरलेन पर ग्रहण लगा है तो ब्राडगेज दूर तक आती नहीं दिख रही है। हर साल सिवनी के निवासी रेल बजट को सुनते हैं और उसके बाद निराश हो जाते हैं। सिवनी के सांसद विधायक भी जिले के विकास की ओर ध्यान देना मुनासिब नहीं समझते हैं। कहने को मैने ये किया‘ ‘मैने वो किया‘ ‘मैने फलां को पत्र लिखाजैसे जुमलों से वे अपनी पीठ थपथपाते ही दिखते हैं।

कुल मिलाकर चालीस साल पहले देश में घोषित तौर पर आपातकाल लगा था,किन्तु कुछ सालों से सिवनी के हालात देखकर यह लगने लगा है मानो हम अघोषित आपातकाल के साए में ही जी रहे हैं। चहुंओर अराजकता है, विपक्ष मौन है, जनता आखिर उम्मीद करे तो किससे . . .।

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