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किसके आदेश का इंतजार है पुलिस को!

समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया
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(शरद खरे)


विधानसभा की रणभेरी बज चुकी है। जिले में सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद करने में जुट चुकी है सिवनी की पुलिस। जगह जगह बेरीकेट्स लगाकर वाहनों की चेकिंग का अभियान छेड़ा गया है। इस अभियान में कुछ हद तक सफलता भी मिलती दिख रही है। पिछले दिनों एक कपड़ा व्यापारी के पास से 3 लाख 82 हजार रूपए की रकम मिली। कहा जा रहा है कि वह रकम एक नंबर की थी, इसलिए व्यापारी को लौटा दी गई है। इससे साफ हो जाता है कि अगर पुलिस चाहे तो कुछ भी असंभव नहीं है। पता नहीं क्यों चुनाव के आते ही या ऊपर से आदेश आते ही पुलिस हरकत में आती है, बाकी समय पुलिस हाथ पर हाथ धरे ही बैठी रहती है।

चुनाव के चलते ही सही, कम से कम पुलिस हरकत में तो आई है। मीडिया में भी पुलिस की सख्ती, औचक निरीक्षण, सघन चेकिंग अभियान की खबरें पटी पड़ी हैं। जनसंपर्क विभाग भी मुस्तैदी के साथ पुलिस की इस चेकिंग की खबरें जारी कर पुलिस का मनोबल बढ़ाने में मदद कर रहा है। वैसे भी सिवनी जिला पहले से ही संवदेनशील है, साथ ही साथ सिवनी का राष्ट्रीय राजमार्ग पर होना भी इसके संवेदनशील होने का बड़ा कारण माना जा सकता है। याद पड़ता है जब मीनाक्षी शर्मा सिवनी में पुलिस अधीक्षक थीं, उस वक्त मुंबई के एक टैक्सी चालक का शव लखनवाड़ा थाना क्षेत्र में मिला था। उस समय पत्रकार वार्ता में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक श्रीमति मीनाक्षी शर्मा ने इस बात को परोक्ष तौर पर स्वीकार किया था कि अपराधियों के लिए सिवनी सॉफ्ट टारगेट से कम नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि सिवनी की शांत फिजां, जरायमपेशा लोगों के छिपने के संक्रमणकाल में एशगाहसे कम नहीं आंकी जा सकती है।

सिवनी में गंभीर किस्म की श्रेणी वाले अपराध भी तेजी से बढ़ रहे हैं। सिवनी शहर के अंदर भरी आबादी वाले क्षेत्र में बारूद फटता है एक व्यक्ति के चीथड़े उड़ जाते हैं, उंट की कुबार्नी से तनाव फैलता है, होली के पहले ही दर्जनों की तादाद में जिंदा बम मिलते हैं, प्रतिबंधात्मक सिमी के कार्यकर्ता मिलते हैं, बात बात पर हत्याएं हो जाती हैं, क्रिकेट एवं अन्य सट्टे में उधारी के चलते एक दूसरे पर पिस्तौलें तन जाती हैं, और न जाने क्या क्या संगीन अपराध घटित हो रहे हैं शांत सिवनी में। पुलिस के ही सूत्र यह भी बताते हैं कि सिवनी शहर में कम से कम दो ग्रूस (एक ग्रूस का मतलब बारह दर्जन यानी 144 नग) से ज्यादा अवैध माउज़र हैं।

यक्ष प्रश्न यह है कि क्या पुलिस को इसकी जानकारी नहीं है? क्या पुलिस का खुफिया तंत्र पूरी तरह ढह चुका है? क्या पुलिस सदा ही कर्मचारियों के अभाव का रोना रोती रहेगी? कुछ समय से पुलिस के जवान रंगरूट और अधिकारी बड़ी तादाद में शहर में दिन रात गश्त करते देखे जा रहे हैं, हो सकता है यह अतिरिक्त पुलिस बल त्यौहार या चुनावों को देखकर बुलाया गया हो। अगर यहां अतिरिक्त पुलिस बल बुलाया गया है तो उसका सदुपयोग करना चाहिए।

चुनाव के चलते ही सही, कम से कम पुलिस ने वाहनों की चेकिंग आरंभ की है। जब वाहनों की चेकिंग हो ही रही है तो सिर्फ शराब, असलाह या बड़ी रकम की ही चेकिंग क्यों? वाहन के कागजात, इंश्योरेंस, फिटनेस, परमिट आदि भी लगे हाथ देख लिया जाए। सरकारी या गैर सरकारी वे वाहन जो टैक्सी कोटे में रजिस्टर्ड हैं उनकी पीली नंबर प्लेट के बजाए सफेद नंबर प्लेट है तो उन पर (भले ही वे सरकारी क्यांे न हों, क्योंकि कानून सबके लिए समान ही है) दण्डात्मक कार्यवाही कर चालान काटा जाए।

कुरई पुलिस की पीठ उच्चाधिकारियों को थपथपाना चाहिए, क्योंकि वह वाहनों विशेषकर यात्री बसों के सामान की डिक्की खुलवाकर उसकी चेकिंग कर रही है। मगर कुरई पुलिस से उच्चाधिकारियों द्वारा यह भी पूछ लिया जाए कि क्या उसने यात्री बसों के परमिट, फिटनेस, दो दरवाजे आदि की भी चेकिंग की है? कितने वाहनों की चेकिंग की गई और कितने वाहन नियमानुसार सही पाए गए? पुलिस से अपेक्षा इसलिए है क्योंकि खवासा में स्थापित (अब मेटेवानी में) परिवहन विभाग की चेक पोस्ट में तो सारे के सारे वाहन लक्ष्मी मैया की असीम अनुकंपा से वैध ही पाए जाते हैं।

यातायात पुलिस ने गत दिवस शक्कर का एक ट्रक पकड़ा था। इस वाहन ने शक्कर का विक्रय कर नहीं पटाया था। बाद में 18 हजार 976 रूपए का समन शुल्क देकर इस वाहन को छोड़ा गया। क्या विक्रय कर अधिकारी ने खवासा जांच चौकी से इस बात की जानकारी ली कि आखिर महाराष्ट्र से यह वाहन सेल्स टैक्स की चोरी कर एमपी में घुसा तो घुसा कैसे? जाहिर है खवासा बार्डर में चढ़ोत्री चढ़ाकर ही यह अवैध रूप से शक्कर लाने वाला वाहन पूरी तरह वैध हो गया होगा। जिला कलेक्टर भरत यादव से अपेक्षा है कि इस संबंध में संज्ञान लेकर विक्रय अधिकारी और खवासा जांच चौकी से जवाब तलब अवश्य करें, ताकि यह नजीर बने और आने वाले समय में करों की चोरी कर अपनी जेब भरने वाले सरकारी नुमाईंदे इस बात से सबक लेकर कर्तव्यों का निर्वहन उचित तरीके से कर सकें।

संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव एवं पुलिस अधीक्षक बी.पी.चंद्रवंशी से अपेक्षा ही की जा सकती है कि वाहनों की चेकिंग के लिए पुलिस बल को उचित दिशा निर्देश अवश्य प्रदान करें। साथ ही साथ पुलिस के अंदर भी उच्चाधिकारियों का खौफ पैदा करना आवश्यक है। हाल ही में एक वाहन में कोतवाली पुलिस द्वारा गौमांस जप्त करने की खबर है, खबर तो यह भी है कि लखनवाड़ा पुलिस ने इस वाहन को महज दो हजार रूपए लेकर छोड़ दिया था। अगर इस बात मेें लेशमात्र भी सच्चाई है तो यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि पुलिस में निचले स्तर पर रिश्वत का चलन बेहद ज्यादा है और उच्चाधिकारियों का भय समाप्त हो गया है। आज पुलिस के कारिंदे अपराधियों और आपराधिक छवि वाले लोगों की गलबहियां डाले दिखते हैं। समाज में पुलिस की छवि मित्र की होना चाहिए और अपराधियों में उनका भय होना चाहिए। असल में मामला उलट ही दिख रहा है, समाज पुलिस से डर रहा है और जरायमपेशा लोगों में पुलिस की छवि मित्र की बनती जा रही है. . .।

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