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कब है होली. . . .!

समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया
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(लिमटी खरे)

1975 में आई सुपर डुपर हिट फिल्म शोले में गब्बर सिंह का डायलाग, कब है होली . . ., उस दौर के लोगों की जुबान पर इस कदर चढ़ गया था कि मत पूछिए, वह वाकई डकैतों का समय था और उसके बाद की होली में गांव के लोग चाक चौबंद ही रहा करते थे। होली पर रूपहले पर्दे पर भी अनेक एसे गीत आए जो समय बेसमय लोग गुनगुनाते देखे गए। जब तक महान निर्माता निर्देशक और कलाकार राज कपूर जिंदा रहे तब तक उनके आर.के.स्टूडियो की होली भी अपने आप में अनोखी ही रहा करती थी। होली के जमकर शौकीन राजकपूर ने स्टूडियो में तो होली खेली पर अपनी फिल्मों में उन्होंने होली को कभी नहीं फिल्माया। होली के ना जाने कितने नाम देश विदेश में प्रचलित हैं। वैसे भी अनेकता में एकता ही भारत की विशेषता कही जा सकती है।

होली शब्द जेहन में आते ही सारा जहां रंगों से सराबोर दिखाई पडने लगता है। लगता है मानो कुदरत की सबसे अनुपम भेंट धरती और हम इंसानों सहित समूचे पशु पक्षी रंगों से नहा गए हों। होली का पर्व आते आते ही मन आल्हादित हो उठता है। युवाओं के मन मस्तिष्क में न जाने किसम किसम की भावनाएं हिलोरे मारने लगती हैं। प्रोढ और वृद्ध भी साल भर रंगो के इस त्योहार की प्रतिक्षा करते हैं। सबसे बडी और अच्छी बात तो यह है कि देश के हर धर्म, वर्ग, मजहब के लोग होली का पूरा सम्मान कर एक दूसरे से गले मिलने से नहीं चूकते हैं।

भारत को समूचे विश्व में अचंभे की नजरों से देखा जाता है। इसका कारण यह है कि यहां हर 20 किलोमीटर की दूरी पर बोलचाल की भाषा में कुछ न कुछ परिवर्तन दिखने लगता है। हिन्दुस्तान ही इकलौता एसा देश है जहां हर धर्म, हर पंथ, हर मजहब को मानने की आजादी है। दुनिया भर के लोग आश्चर्य इस बात पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि आखिर कौन सी ईश्वरीय ताकत है जो इतने अलग अलग धर्म, पंथ, विचार, मजहब के लोगों को एक सूत्र में पिरोए रखती है।

अगर देखा जाए तो भारत कुदरत की इस कायनात का एक सबसे दर्शनीय, पठनीय, श्रृवणीय करिश्मा होने के साथ ही साथ महसूस करने की विषय वस्तु से कम नहीं है, यही कारण है कि हर साल लाखों की तादाद में विदेशी सैलानी यहां आकर इन्ही सारी बातों के बारे में अध्ययन, चिंतन और मनन करते हैं। भारत के अंदर फैली एताहिसक विरासतों में विदेशी सैलानी बहुत ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं।

भारत के अनेक प्रांतों में होली को अलग अलग नामों से जाना जाता है। पर्व एक है, उल्लास भी कमोबेश एक ही जैसा होता है, बस नाम ही जुदा है। इसके साथ ही साथ इसे मनाने का अंदाज भी बहुत ज्यादा हटकर नहीं है। अगर आप इब्नेबबूता (मुगलकालीन धुमक्कड) बनकर समूचे देश की सैर करें तो आप पाएंगे कि वाकई होली एक है, भावनाएं एक हैं, प्रेम का इजाहर कमोबेश एक सा है, बस अंदाज कुछ थोडा मोडा जुदा है।

दुलैंडी

होली शब्द के कान में गूंजते ही देवर भाभी के बीच की नोक झोंक, छेड छाड के फिल्मी दृश्य जेहन में जीवंत हो उठते हैं। वैसे तो देश के अनेक भागों में देवर भाभी के बीच होने वाले पंच प्रपंच को होली से जोडकर देखा जाता है, पर हरियाणा में इसका बहुत ज्यादा प्रचलन है। मजे की बात यह है कि हरियाणा में इस दिन भाभी को देवर की पिटाई करने का सामाजिक हक मिल जाता है। इस दिन भाभी द्वारा पूरे साल भर की देवर की करतूतों हरकतों के हिसाब से उसकी पिटाई की जाती है। दिन ढलते ही शाम को लुटा पिटा देवर भाभी के लिए मिठाई लाता है।

फाग पूर्णिमा

बिहार में होली को फाग पूर्णिमा भी कहा जाता है। दरअसल फाग का मतलब होता है, पाउडर और पूर्णिमा अर्थात पूरे चांद वाला। बिहार में शेष हिन्दुस्तान की तरह आम तरह की ही होली मनाई जाती है। ‘‘नदिया के पार‘‘ में दिखाई होली बिहार में खेले जाने वाले फगवा की ओर इशारा करती है। बिहार में होली को फगवा इसलिए भी कहते हैं क्योंकि यह फागुन मास के अंतिम हिस्से और चैत्र मास के शुरूआती समय मनाई जाती है।

डोल पूर्णिमा

पश्चिम बंगाल में युवाओं द्वारा मनाई जाने वाली होली को डोल पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सुबह से ही केसरिया रंग का लिबास पहनकर युवा हाथों में महकते फूलों के गजरे और हार लटकाए हुए नाचते गाते मोहल्लों से होकर गुजरते हैं। कुछ स्थानों पर युवा पालकी में राधा कृष्ण की तस्वीर या प्रतिमा रखकर सज धजकर उल्लास से झूमते नाचते हैं।

बसंत उत्सव

पश्चिम बंगाल मेें इस उत्सव की शुरूआत नोबेल पुरूस्कार प्राप्त साहित्यकार गुरू रविंद्रनाथ टैगोर ने की थी। गुरूदेव के द्वारा स्थापित शांति निकेतन में बसंत उत्सव का पर्व बहुत ही सादगी और गरिमा पूर्ण तरीके से मनाया जाता है। शांति निकेतन के छात्र छात्राएं न केवल पारंपरिक रंगों से होली खेलते हैं, बल्कि गीत संगीत, नाटक, नृत्य आदि के साथ बसंत ऋतु का स्वागत करते हैं।

कमन पंडिगाई

तमिलनाडू में होली का पर्व कमन पंडिगाई के रूप में भी मनाया जाता है। तमिलनाडू में होली पर भगवान कामदेव की अराधना और पूजा की जाती है। यहां मान्यता है कि भोले भंडारी भगवान शिव ने जब कामदेव को अपने कोप से भस्म किया था, तो इसी दिन कामदेव की अर्धांग्नी रति के तप, प्रार्थना और तपस्या के उपरांत भगवान शिव ने उन्हें पुर्नजीवित किया था।

शिमगो

मूलतः शिमगो गोवा के इर्द गिर्द ही मनाया जाता है। महाराष्ट्र की कोकणी भाषा में होली को शिमगो का नाम दिया गया है। शेष भारत की तरह गोवा के लोग भी रंगों को आपस में उडेलकर बसंत का स्वागत करते हैं। इस पर्व पर ढेर सारे पकवान बनाए जाते हैं, आपस में बांटे जाते हैं। खासतौर पर पणजिम में यह त्योहार बहुत ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक और पौराणिक कथाओं पर आधारित नाटकों का मंचन भी इसी दिन किया जाता है।

होला मुहल्ला

पंजाब में होला मुहल्ला का इंतजार हर किसी को होता है। यह होली के दूसरे दिन आनंदपुर साहिब में लगने वाले सालाना मेले का नाम है। मान्यता है कि होला मुहल्ला की शुरूआत सिख पंथ के दसवें गुरू, ‘‘गुरू गोविंद सिंह जी‘‘ द्वारा की गई थी। तीन दिन तक चलने वाले इस पर्व के दौरान सिख समुदाय के लोग खतरनाक खेलों का प्रदर्शन कर उनके माध्यम से अपनी ताकत और क्षमताओं का प्रदर्शन करते हैं।

रंग पंचमी

समूचे महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल सहित मालवा अंचल में होली का जश्न और सुरूर एक दो नहीं पूरे पांच दिन होता है। होलिका दहन के दूसरे दिन धुरैडी से लेकर रंग पंचमी तक लोग होली पूरे शबाब पर होती है। धुरैडी के उपरांत लोग पांचवा दिन अर्थात रंग पंचमी का बेसब्री से इंतजार करते हैं। प्रदेश के कुछ भागों में तो होली से ज्यादा आनंद रंग पंचमी का लिया जाता है। राज्य मेें खासतौर पर मछुआरा समुदाय इस पर्व को बडी ही धूमधाम के साथ मनाता है। वे जोरशोर से नाचते गाते बजाते हैं। इस दिन हुई शादी को वे बहुत ही शुभ मानते हैं।

देखा जाए तो होली रंगों का एसा त्योहार है जिसमें दुश्मन भी आपस में मिलते हैं। होली को भारतीय सिनेमा में जमकर मशहूर किया है। शोले में अमजद खान की गब्बर सिंह वाली भूमिका वाकई जीवंत हो गई थी। सत्तर के दशक के अंत में अनेक महिलाएं घरों में गब्बर सिंह की आवाज गूंजती महसूस करतीं और वे रात को सो भी नहीं पातीं।

1940 में बनी फिल्म औरत में महबूब खान ने जमुना के श्याम खेलें होलीको स्थान दिया था। इसके बाद मदर इंडिया में होली आई रे कन्हाई, रंग छलके तो दिलीप कुमार की आन में खेलो रंग हमारे संग ने धूम मचाई थी। कोहनूर फिल्म में तन रंग लो आज मन रंग लो, का अपना अलग जलजला रहा। नवरंग में चल जा रहे हट नटखट ने युवाओं को खासा लुभाया। गाईड के एक गाने पिया तोसे . . में भी होली का एक अंतरा जोड़ा गया। कटी पतंग में आज ना छोड़ेगे बस हमजोली भी युवाओं को काफी भाया।

मशाल में ओ देखो आई होली तो लम्हे में मोहे छेड़ो ना, का जवाब नहीं। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन पर शोले के अलावा सिलसिला में रंग बरसे का तो अपना अलग अनूठा अंदाज देखने को मिला। इसमें अमिताभ बच्चन जया भादुडी और रेखा के त्रिकोण को जमकर उकेरा गया था। नदिया के पार में होली पर जोगी जी का अंदाज ही अलग रहा। (साई फीचर्स)

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